आये मौसम जब रिमझिम के सावन जैसी बरखा हो. भर जाए जब तालाब पोखरें फिर क्या सुहाना मौसम हो. भीगें जमकर जब पहली बारिस में बुखार निमोनिया फिर जैसे हो. जब जब फिर वो बरखा आये वाह! फिर चाय पकोड़े बनते हों. सूरज जब वो साँझ ढले घर को पंछी जाते हों. कूँ कूँ करती कोयलें बैठ के जब सखाओं पर सुनकर इनकी बोली जैसे दिल को छूकर जाती हो. आये मौसम जब रिमझिम के सावन जैसी बरखा हो. रोहित कुमार